<>दिव्य श्री मद भागवत कथा महोत्सव पूज्य श्री विपिन बापू जी कथा स्थल :- श्री लडोबाई नारायणी चेरीटेबल ट्रस्ट ग्राम मुकाम ,पोस्ट डोहका हरिया ,तहसील चरकी दादरी जिला भिवाणी (हरियाणा) ,,,,, इस पुण्य महोत्सव मे पधारकर इस सुअवसर का लाभ उठायें .. जय श्री राधे <>

Vrindavan & Bhagwat katha




उत्तर भारत में मथुरा शहर से आठ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में श्री वृन्दावन स्थित है। श्री कृष्ण की क्रीणास्थली रहा यह वृन्दावन आध्यात्मिक तौर पर अत्यन्त पवित्र व रमणीय है। यहां लगभग पांच हजार से भी अधिक मन्दिर स्थित हैं। इन मन्दिरों में जाकर प्राणी के मन से काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि  स्वतः ही मिट जाते हैं। वृन्दावन नगरी में आज भी श्री कृष्ण की मधुर मुरली की तान का आभास होता है। यहां की कुंज गलियां यह आभास दिलाती हैं कि वृन्दावन धरती पर स्वर्ग से भी अधिक बढ़कर है। कवियों ने कहा है कि -
             वृन्दावन धाम को वास  भलो जहां पास बहें यमुना पटरानी
             जो जन नहाय के ध्यान धरे वैकुण्ठ मिले तिनकों रजधानी ।
            वेद पुरान बखान करें सब सन्त मुनी तिनके मन मानी
            यमुना यमदूतन टारत हैं भव तारत हैं श्री राधिका रानी।।
        इस काव्य में वृन्दावन की महिमा बतायी गई है। कवि कहते हैं कि यदि मुझे पशु, वृक्ष, पत्थर, भिखारी, मोर अगर कुछ भी बनाना है तो मुझे वृन्दावन का बनाओ ताकि मैं किसी ना किसी रूप में वृन्दावन में आने वाले भक्तों की सहायसता कर सकूं। जिससे मेरी मुक्ति हो सके। वृन्दावन की धरती अत्यन्त पवित्र व मोक्षदायिनी है कि कहते हैं कि-
 मुक्ति पूंछे हरि से मेरी मुक्ति बताए,
 वृज रज उड़ मस्तक लगे मुक्ति मुक्त हो जाए। 
वृज रज की महिमा के कारण तो मुक्ति भी मुक्त हो जाती है। वृन्दावन  के कण-कण में भगवान श्रीकृष्ण  का  वास  है। यहां के वृजवासी भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप हैं। वृजवासी के मुख से कथा का श्रवण श्रेष्ठ माना जाता है। 
                   श्रीमद्भागवत सुनना व उसका आयोजन कराना मोक्ष अर्थात मुक्ति की ओर बढाया गया प्रथम कदम है। इस संदर्भ में श्री हरिदास जी ने कहा है कि-
प्रथम सुने श्रीमद्भागवत भक्त मुख भगवत वाणी
द्वितीय अराधे व्यास भक्ति नव भांति वखानी 
तृतीय करें गुरु समझ दक्ष सर्वज्ञ रसीलो
चौथे होए विरक्त वसै वनराज यषीलो
पांचे भूले देह सुध तब छठे भावना रास की 
साते पावे रीत रस श्री स्वामी हरिदास की।
इस काव्य के अनुसार मुक्ति पाने के लिए सबसे पहला कदम श्रीमद्भागवत सुनना व कराना बताया गया है। उसके पश्चात दूसरे कदम में जो व्यास आसन पर विराजमान होकर हमें श्रीमद्भागवत कथा का पान कराते हैं उन व्यास जी का आदर करना चाहिए उनकी सेवा पूजा करनी चाहिए। फिर तीसरी बार  में हमको समझ बूझकर गुरु बनाना चाहिए और गुरु भी ऐसा वैसा नहीं गुरु ऐसा होना चाहिए जो दक्ष हो सबकुछ जानने वाला हो और हर एक वस्तु में रस का आनन्द लेने वाला हो। फिर चौथे कदम में हमें संसार से विरक्त हो जाना चाहिए इसका मोह त्याग देना चाहिए और किसी तीर्थ धाम में किसी वन में जाकर निवास करना चाहिए। तब ये चार कदम आप अपना लोगे तो पांचवी बार में आप अपने इस शरीर की सुध बुध ही भूल जाओगे। जब ऐसी हालत आपकी हो जाएगी तो छठी बार में आपकी परमपिता परमेष्वर प्रेमस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण के  साथ रास  रचाने की इच्छा होगी और सातवीं बार में तो आप हरिदास जी की तरह मोक्ष को प्राप्त कर लोगे।
यह सब वृज वासियों के द्वारा कही जाने वाली श्रीमद्भागवत कथा का अंषमात्र पुण्य प्रभाव के बारे में व्याख्या की है। क्योंकि इसकी व्याख्या करना तो ऋषि मुनियों के वष की भी बात नहीं है।
इसलिए मेरी कामना है कि अपने जीवन का  कल्याण करते हुए एक बार वृन्दावन धाम की यात्रा जरूर करें और श्रीमद्भागवत कथा का पान कर अपने जीवन को धन्य बनावें।